Saturday, 2 March 2019


My first attempt at Hindi. Forgive the grammar and spelling.

आज बड़े दिनों के बाद धूप खिली थी:
मीठी धूप, नीला आसमान, पंछियों की संगीत।
बादलों का कोई नामोनिशान ही न था।
था, तो तिरंगा, पटाखें, भांगड़ा;
थी, तो Twitter की चहचहाहट;
था उतकंठ इंतजार, उमड़ती खुशी , और कड़ोड़ो आॅखो की नमी : बेटा जो घर वापस आ रहा था, देश का बेटा।

जिला बेगुसराय, गांव बलिहार के एक छोर पर, उस टूटे फ़ूटे मकान के बाहर, जिस पर बादल आज भी कूढ़ रहें हैं,
पूलवामा की मां ने मैले आंचल से आंसू पोंछे और कहा: राम करे, सारे बेटे ऐसे ही घर वापस आ जाए......

The masked waitress had placed a wooden tray with three little black porcelain bowls: one, the staple green chillies in vin...